कुछ अनोखा है आजकल मुझमें

कुछ अनोखा है आजकल मुझमें मैं ग़ज़ल में हूँ और ग़ज़ल मुझमें   डूबकर देख एक पल मुझमें ढूँढ ले मुश्क़िलों के हल मुझमें   तू नुमाइश से मत रिझा मुझको है अभी शेष आत्मबल मुझमें   काट मत धूप की शिक़ायत पर कल को लगने हैं मीठे फल मुझमें   तू समन्दर है फिर … Continue reading कुछ अनोखा है आजकल मुझमें